Ajay Amitabh Suman
2 min readJan 15, 2023

फिर से सतयुग भू पर लाओ

विधी न्याय संकल्प प्रलापित,
किंतु कैसा कल्प प्रकाशित?
दुर्योधन का राज चला है,
शकुनि पाशे को मचला है।

एकलव्य फिर हुआ उपेक्षित,
अंधे का साम्राज्य फला है।
जब पांचाली वस्त्र हरण हो,
अभिमन्यु के जैसा रण हो।

चक्रव्यूह कुचक्र रचा कर,
एक रथी का पुनः मरण हो।
धर्मराज पाशे के प्यासे,
लिप्त भोग के संचय में।

न्याय नीति का हुआ विस्मरण,
पड़े विदुर अति विस्मय में।
अधर्म हीं आज रीत है,
न्याय तराजू मुद्रा क्रीत है।

भीष्म सत्य का छद्म प्रवंचन,
द्रोण माणिक पर करे हैं नर्तन।
धृष्ट्र राष्ट्र तो है हीं अंधे,
कुटिलों के हीं चलते धंधे।

फिर भी अबतक आस वही है ,
हाँ तुझपर विश्वास वही है।
हम तेरे हीं दर पर जाते,
पर दुविधा में हम पड़ जाते।

क्योंकि पाप अनल्प बचा है,
ना कोई विकल्प बचा है।
नीति युक्त ना क्रियाकल्प है,
तिमिर घनेरा आपत्कल्प है।

दिग दिगंत पर अबला नारी,
नर पिशाच के हाथों हारी।
हास लिप्त हैं अत्याचारी,
दुःसंकल्प युक्त व्यभिचारी।

संशय तब संभावी होता,
निःसंदेह प्रभावी होता।
धर्मग्रंथ के अंकित वचनों,
का परिहास स्वभावी होता।

आखिर क्यों वचनों को मानें,
बात लिखी उसको सच जाने।
आस कहां हम करें प्रतिष्ठित,
निज चित्त में ये प्रश्न अधिष्ठित।

जिस न्याय की बात बता कर,
सत्य हेतु विध्वंस रचा कर।
किए कल्प का जो अभियंत्रण ,
वही कल्प दे रहा निमंत्रण।

हे कृष्ण हे पार्थ सारथी,
सकल विश्व के परमारथी।
आर्त हृदय से धरा पुकारे,
धरा व्याप्त है आज स्वारथी।

नीति पुण्य का जब क्षय होगा,
और अधर्म का जब जय होगा।
तुम कहते थे तुम आओगे ,
कदाचार क्षय कर जाओगे।

कुत्सित आज आचार बड़ा है,
दु:शासन से आर्त धरा है।
कहाँ न्याय है कहाँ धर्म है?
दुराचार पथभ्रष्ट कर्म है।

क्या इतना नाकाफी तुझको,
दिखती नाइंसाफी तुझको?
दुष्कर्मी व्यापार फला जब,
किसका इंतज़ार भला अब?

तेरे कहे धर्म क्षय कब होता,
पापाचार का कब जय होता?
और कितने दुष्कर्म फलेंगे,
तब जाके तेरे पांव पड़ेंगे?

कान्हा आखिर कब आओगे?
बात कही जो कर पाओगे।
अति त्रस्त हम हमें बचाओ ,
धर्म पताका फिर फहराओ।

नीति न्याय का जो आलापन,
था उसका कुछ लो संज्ञापन।
वचनों में संकल्प दिखाओ,
फिर से सतयुग भूपर लाओ।

अजय अमिताभ सुमन

Ajay Amitabh Suman
Ajay Amitabh Suman

Written by Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539

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