Ajay Amitabh Suman
1 min readJun 12, 2021

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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-8

शठ शकुनि से कुटिल मंत्रणा करके हरने को तैयार,

दुर्योधन समझा था उनको एक अकेला नर लाचार।

उसकी नजरों में ब्रज नंदन राज दंड के अधिकारी,

भीष्म नहीं कुछ कह पाते थे उनकी अपनी लाचारी।

धृतराष्ट्र विदुर जो समझाते थे उनका अविश्वास किया,

दु:शासन का मन भयकम्पित उसको यूँ विश्वास दिया।

जिन हाथों संसार फला था उन हाथों को हरने को,

दुर्योधन ने सोच लिया था ब्रज नन्दन को धरने को।

नभपे लिखने को लकीर कोई लिखना चाहे क्या होगा?

हरि पे धरने को जंजीर कोई रखना चाहे क्या होगा?

दीप्ति जीत हीं जाती है वन चाहे कितना भी घन हो,

शक्ति विजय हीं होता है चाहे कितना भी घन तम हो।

दुर्योधन जड़ बुद्धि हरि से लड़ कर अब पछताता था,

रौद्र कृष्ण का रूप देखकर लोमड़ सा भरमाता था।

राज कक्ष में कृष्ण खड़े जैसे कोई पर्वत अड़ा हुआ,

दुर्योधन का व्यूहबद्ध दल बल अत्यधिक डरा हुआ।

देहओज से अनल फला आँखों से ज्योति विकट चली,

जल जाते सारे शूर कक्ष में ऐसी द्युति निकट जली।

प्रत्यक्ष हो गए अन्धक तत्क्षण वृशिवंश के सारे वीर,

वसुगण सारे उर उपस्थित ले निज बाहू तरकश तीर।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित

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Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539