Ajay Amitabh Suman
2 min readNov 20, 2022

दुर्योधन कब मिट पाया :भाग :41

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दुर्योधन ने अपने अनुभव पर आधारित जब इस सत्य का उद्घाटन किया कि अश्वत्थामा द्वारा लाए गए वो पांच कटे हुए नर मुंड पांडवों के नहीं है, तब अश्वत्थामा को ये समझने में देर नहीं लगी कि वो पाँच कटे हुए नरमुंड पांडवों के पुत्रों के हैं। इस तथ्य के उदघाटन होने पर एक पल को तो अश्वत्थामा घबड़ा जाता है, परंतु अगले ही क्षण उसे ये बात धीरे धीरे समझ में आने लगती है कि भूल उससे नहीं अपितु उन पांडवों से हुई थी जिन्होंने अश्वत्थामा जैसे प्रबल शत्रु को हल्के में ले लिया था। भले हीं अश्वत्थामा के द्वारा भूल चूक से पांडवों के स्थान पर उनके पुत्रों का वध उसके हाथों से हो गया था , लेकिन उसके लिए ये अनपेक्षित और अप्रत्याशित फल था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। प्रस्तुत है मेरी कविता “दुर्योधन कब मिट पाया का इकतालिसवां भाग।
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दुर्योधन कब मिट पाया:
भाग-41
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मृदु मस्तक पांडव के कैसे,
इस भांति हो सकते हैं?
नहीं किसी योद्धासम दृष्टित्,
तरुण तुल्य हीं दीखते हैं।
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आसां ना संधान लक्ष्य हे,
सुनो शूर हे रजनी नाथ,
अरिशीर्ष ना हैं निश्चित हीं,
ले आए जो अपने साथ।
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संशय के वो क्षण थे कतिपय ,
कूत मात्र ना बिना आधार ,
स्वअनुभव प्रत्यक्ष आधारित,
उदित मात्र ना वहम विचार।
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दुर्योधन का कथन सत्य था,
वही तथ्य था सत्यापित।
शत्रु का ना हनन हुआ निज,
भाग्य अन्यतस्त्य स्थापित।
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द्रोण पुत्र को ज्ञात हुआ जब,
उछल पड़ा था भू पर ऐसे ,
जैसे आन पड़ी विद्युत हो,
उसके हीं मस्तक पर जैसे।
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क्षण को पैरों के नीचे की
अवनि कंपित जान पड़ी ,
दिग दृष्टित निजअक्षों के जो,
शंकित शंकित भान पड़ी।
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यत्किंचित पांडव जीवन में
कतिपय भाग्य प्रबल होंगे,
या उसके हीं कर्मों के फल,
दोष गहन सबल होंगे।
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या उसकी प्रज्ञा को घेरे,
प्रतिशोध की ज्वाला थी,
लक्ष्यभेद ना कर पाया था,
किस्मत में विष प्याला थी।
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ऐसी भूल हुई थी उससे ,
क्षण को ना विश्वास हुआ,
भूल चूक सी लगती थी,
दोष बोध अभिज्ञात हुआ।
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पलभर को हताश हुआ था,
पर संभला अगले पल में ,
जो कल्पित भी ना कर पाया,
प्राप्त हुआ उसको फल में।
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धर्मराज ने उस क्षण कैसे,
छल का था व्यापार किया,
सही हुआ वो जिंदा है ना,
सरल मरण संहार हुआ।
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पिता नहीं तो पुत्र सही,
उनके दुष्कर्म फलित होंगे,
कर्म फलन तो होना था पर,
ज्ञात नहीं त्वरित होंगे।
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अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित
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Ajay Amitabh Suman
Ajay Amitabh Suman

Written by Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539

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