जग में है सन्यास वहीं

Ajay Amitabh Suman
2 min readOct 19, 2019

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जग में डग का डगमग होना ,
जग से है अवकाश नहीं ,
जग जाता डग जिसका जग में,
जग में है सन्यास वहीं ।

है आज अंधेरा घटाटोप ,
सच है पर सूरज आएगा,
बादल श्यामल जो छाया है,
एक दिन पानी बरसायेगा।
तिमिर घनेरा छाया तो क्या ,
है विस्मित प्रकाश नहीं,
जग में डग का डगमग होना,
जग से है अवकाश नहीं।

कभी दीप जलाते हाथों में,
जलते छाले पड़ जाते हैं,
कभी मरुभूमि में आँखों से,
भूखे प्यासे छले जाते हैं।
पर कई बार छलते जाने से,
मिट जाता विश्वास कहीं?
जग में डग का डगमग होना,
जग से है अवकाश नहीं।

सागर में जो नाव चलाये,
लहरों से भिड़ना तय उसका,
जो धावक बनने को ईक्षुक,
राहों पे गिरना तय उसका।
एक बार गिर कर उठ जाना,
पर होता है प्रयास नहीं,
जग में डग का डगमग होना,
जग से है अवकाश नहीं।

साँसों का क्या आना जाना,
एक दिन रुक हीं जाता है,
पर जो अच्छा कर जाते हो,
वो जग में रह जाता है।
इस देह का मिटना केवल,
किंचित है विनाश नहीं।
जग में डग का डगमग होना,
जग से है अवकाश नहीं।

जग में डग का डगमग होना ,
जग से है अवकाश नहीं ,
जग जाता डग जिसका जग में,
जग में है सन्यास वहीं ।

©अजय अमिताभ सुमन

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Ajay Amitabh Suman
Ajay Amitabh Suman

Written by Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539

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