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Feb 11, 2024

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मृत होकर मृतशेष रहे

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या मर जाये या मारे चित्त,
में कर के ये दृढ निश्चय,

शत्रु शिविर को जो चलता हो ,
हार फले कि या हो जय।

समरअग्नि अति चंड प्रलय हो,
सर्वनाश हीं रण में तय हो,

तरुण बुढ़ापा ,युवा हीं वय हो ,
फिर भी मन से रहे अभय जो।

ऐसे युद्धक अरिसिंधु में ,
मिटकर भी सविशेष रहे।

जग में उनके अवशेष रहे ,
शूर मृत होकर मृतशेष रहे।

अजय अमिताभ सुमन

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Ajay Amitabh Suman
Ajay Amitabh Suman

Written by Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539

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