मुद्रा नियमित शिक्षण

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येन केन धन अर्जन हीं हो ,

जब शिक्षा का लक्ष्य प्रधान,

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मुद्रा नियमित शिक्षण और,

द्रव्यार्जन को मिलता सम्मान।

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ज्ञान की वृद्धि बोध की शुद्धि ,

का शिक्षक को ध्यान नहीं,

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प्रज्ञा दोष के निस्तारण का ,

शिक्षक को अभिज्ञान नहीं।

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तब उस विद्यालय में कोई ,

बोध का दर्पण क्या होगा?

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विद्यार्थी व्यवसाय पिपासु ,

ज्ञान विवर्धन क्या होगा?

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 याद रहे गर देश में शिक्षण,

बना हुआ मजदूरी हो ,

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 शक्ति संचय अति आवश्यक,

शिक्षण गैर जरुरी हो।

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तब राष्ट्र में बेहतर शिक्षक ,

अक्सर हीं हो जाते मौन ।

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और राष्ट्र पर आती आपद ,

अभिवृद्धि हो जाती गौण।

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 अजय अमिताभ सुमन

Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539