परम तत्व का हूँ अनुरागी

Ajay Amitabh Suman
1 min readNov 20, 2023

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ना पद मद मुद्रा परित्यागी,

परम तत्व का पर अनुरागी।

इस जग का इतिहास रहा है,

चित्त चाहत का ग्रास रहा है।

अभिलाषा अकराल गहन है,

मन है चंचल दास रहा है।

सरल नहीं भव सागर गाथा,

मूलतत्व की जटिल है काथा।

परम ब्रह्म चिन्हित ना आशा,

किंतु मैं तो रहा हीं प्यासा।

मृगतृष्णा सा मंजर जग का,

अहंकार खंजर सम रग का।

अक्ष समक्ष है कंटक मग का,

किन्तु मैं कंट भंजक पग का।

पोथी ज्ञान मन मंडित करता,

अभिमान चित्त रंजित करता।

जगत ज्ञान मन व्यंजित करता,

आत्मज्ञान भ्रम खंडित करता।

हर क्षण हूँ मैं धन का लोभी,

चित्त का वसन है तन का भोगी।

ये भी सच अभिलाषी पद का ,

जानूं मद क्षण भंगुर जग का।

पद मद हेतु श्रम करता हूँ,

सर्व निरर्थक भ्रम करता हूँ।

जग में हूँ ना जग वैरागी ,

पर जग भ्रम खंडन का रागी।

देहाशक्त मैं ना हूँ त्यागी,

परम तत्व का पर अनुरागी।

अजय अमिताभ सुमन

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Ajay Amitabh Suman
Ajay Amitabh Suman

Written by Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539

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