पतवारें बनो तुम

Ajay Amitabh Suman
2 min readJun 10, 2019

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मौजो से भिड़े हो ,

पतवारें बनो तुम,

खुद हीं अब खुद के,

सहारे बनो तुम।

किनारों पे चलना है ,

आसां बहुत पर,

गिर के सम्भलना है,

आसां बहुत पर,

डूबे हो दरिया जो,

मुश्किल हो बचना,

तो खुद हीं बाहों के,

सहारे बनो तुम,

मौजो से भिड़े हो ,

पतवारें बनो तुम।

जो चंदा बनोगे तो,

तारे भी होंगे,

औरों से चमकोगे,

सितारें भी होंगे,

सूरज सा दिन का जो,

राजा बन चाहो,

तो दिनकर के जैसे,

अंगारे बनो तुम,

मौजो से भिड़े हो,

पतवारें बनो तुम।

दिवस के राही,

रातों का क्या करना,

दिन के उजाले में,

तुमको है चढ़ना,

सूरजमुखी जैसी,

ख़्वाहिश जो तेरी

ऊल्लू सदृष ना,

अन्धियारे बनो तुम,

मौजो से भिड़े हो,

पतवारें बनो तुम।

अभिनय से कुछ भी,

ना हासिल है होता,

अनुनय से भी कोई,

काबिल क्या होता?

अरिदल को संधि में,

शक्ति तब दिखती,

जब संबल हाथों के,

तीक्ष्ण धारें बनों तुम,

मौजो से भिड़े हो,

पतवारें बनो तुम।

विपदा हो कैसी भी,

वो नर ना हारा,

जिसका निज बाहू हो,

किंचित सहारा ।

श्रम से हीं तो आखिर,

दुर्दिन भी हारा,

जो आलस को काटे,

तलवारें बनो तुम ।

मौजो से भिड़े हो ,

पतवारें बनो तुम।

खुद हीं अब खुद के,

सहारे बनो तुम,

मौजो से भिड़े हो,

पतवारें बनो तुम।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित

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Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539