गधा तंत्र

Ajay Amitabh Suman
1 min readJul 3, 2019

--

अपने गधे पे यूँ चढ़ के,
चले कहाँ तुम लाला तड़के?

है तेरी मूछें क्यूँ नीची?
और गधे की पूँछें ऊंची?

ये सुन के शरमाया लाला,
भीतर हीं घबराया लाला।

थोड़ा सा हकलाते बोला,
थोड़ा सा सकुचाते बोला।

धीरज रख कर मैं सहता हूँ ,
बात अजब है पर कहता हूँ।

जाने किसकी हाय लगी है?
ना जाने क्या सनक चढ़ी है?

कहता दाएं मैं बाएं चलता,
सीधी राह है उल्टा चलता।

कहते जन का तंत्र यहीं है,
सब गधों का मंत्र यहीं है।

जोर न इसपे अब चलता है,
जो चाहें ये सब फलता है।

बड़ी भीड़ में ताकत होती,
कौआ चुने हंस के मोती।

जनतंत्र का यही राज है,
गधा है जो चढ़ा ताज है।

बात पते की मैं कहता हूँ
इसी सहारे मैं रहता हूँ ।

और कोई न रहा उपाय,
इसकी मर्जी जहाँ लेजाय।

--

--

Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539