ओ परबत के मूल निवासी

ओ परबत के मूल निवासी,

भोले भाले शिव कैलाशी।


जब जब होता व्याकुल जग से,

तब तुझको देखे अविनाशी।


भव तम को मन मुड़ जाता हैं ,

घन जग बंधन जुड़ जाता हैं।


अंधकार तब होता डग में ,

काँटे बिछ जाते हैं पग में।


विचलित मन अब तुझे पुकारे,

तमस हरो हे अपरिभाषी।


ओ परबत के मूल निवासी,

भोले भाले शिव कैलाशी।


शिव शक्ति हीं राह हमारी,

शिव की भक्ति चाह हमारी।


एक लक्ष्य हीं मेरा तय हो ,

शिव कदमों में निजमन लय हो।


यही चाह ले इत उत घुमुं ,

अमरनाथ बदरीनाथ काशी।


ओ परबत के मूल निवासी,

भोले भाले शिव कैलाशी।


अजय अमिताभ सुमन

Ajay Amitabh Suman
Ajay Amitabh Suman

Written by Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539

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