Jan 21, 2024
ओ परबत के मूल निवासी
ओ परबत के मूल निवासी,
भोले भाले शिव कैलाशी।
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जब जब होता व्याकुल जग से,
तब तुझको देखे अविनाशी।
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भव तम को मन मुड़ जाता हैं ,
घन जग बंधन जुड़ जाता हैं।
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अंधकार तब होता डग में ,
काँटे बिछ जाते हैं पग में।
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विचलित मन अब तुझे पुकारे,
तमस हरो हे अपरिभाषी।
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ओ परबत के मूल निवासी,
भोले भाले शिव कैलाशी।
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शिव शक्ति हीं राह हमारी,
शिव की भक्ति चाह हमारी।
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एक लक्ष्य हीं मेरा तय हो ,
शिव कदमों में निजमन लय हो।
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यही चाह ले इत उत घुमुं ,
अमरनाथ बदरीनाथ काशी।
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ओ परबत के मूल निवासी,
भोले भाले शिव कैलाशी।
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अजय अमिताभ सुमन