एक से पचास

Ajay Amitabh Suman
1 min readAug 6, 2019

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एक दो तीन चार पाँच छे सात,

गिनती ये मेरी प्रभु सुनो जग्गनाथ।

आठ नौ दस ग्यारह बारह तेरह,

तेरा हो हाथ छूटे जन्मों का घेरा।

चौदह पंद्रह सोलह सत्रह अठारह उन्नीस,

हार भी ना मेरा प्रभु ना हीं मेरी जीत।

बीस इक्कीस बाइस तेईस चौबीस पच्चीस,

हरो दुख सारे प्रभु तू हीं मन मीत।

छब्बीस सताईस अठाइस उनतीस तीस इकतीस,

मिल न पाऊँ तुझसे मैं मन में है टीस।

बत्तीस तैतीस चौतीस पैंतीस छत्तीस सैंतीस,

शुष्क हृदय है प्रभु तु हीं इसे सींच।

अड़तीस उनचालीस चालीस इकतालीस बयालीस तैतालिस,

मन मे बसों तु ही बस इतनी सी ख़्वाहिश।

चौवालीस, पैतालीस, छियालीस, सैतालिस, अड़तालीस ,उन्नचास,

एक से शुरू है प्रभु तू हीं है पचास।

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Ajay Amitabh Suman

[IPR Lawyer & Poet] Delhi High Court, India Mobile:9990389539