अखबार
जानवर और आदमी में अंतर ये है कि आदमी को शारीरिक क्षुधा के साथ साथ बौद्धिक क्षुधा को भी शांत करना होता है। यही कारण है कि आदमी के जीवन में सुबह की चाय और अख़बार अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। अख़बार में आदमी किस तरह की खबर रोज पढ़ता है , इससे जानवर के आदमी होने के छलांग का अंदाजा लगाया जा सकता है । क्या आप जानवर के आदमी होने की छलांग का अंदाजा लगा सकते हैं ? नकारात्मक पत्रकारिता पर चोट करती हुई व्ययंगात्मक रचना
क्या खबर भी छप सकती है फिर तेरे अखबार में,
काम एक है नाम अलग ना बदलाहट किरदार में।
अति विशाल हैं वाहन कुछ के रहते महल निवासों में,
मृदु काया सुंदर आनन सब आकर्षित लिबासों में ।
ऐसों को सुन कर भी क्या ना सुंदरता आचार में,
काम एक है नाम अलग ना बदलाहट किरदार में।
कुछ की बात बड़ी अच्छी पर वो इनपे चलते हैं क्या?
माना कि उपदेश सुखद हैं पर कहते जो करते क्या ?
इनको सुनकर ज्ञात हमें ना संवर्द्धन घर बार में,
काम एक है नाम अलग ना बदलाहट किरदार में।
क्या देश की खबर आज है क्या राज्य की बातें हैं,
झगड़े दंगे बात देश की वो हीं राज्य की बातें हैं।
ऐसी खबरों से सीखूं क्या मिले सीख व्यवहार में,
काम एक है नाम अलग ना बदलाहट किरदार में।
सम सामयिक होना भी एक व्यक्ति को आवश्यक है,
पर जिस ज्ञान से हो उन्नति भौतिक मात्र निरर्थक है ।
नित्य खबर की चुस्की से है अवनति संस्कार में,
काम एक है नाम अलग ना बदलाहट किरदार में।
क्या खबर भी छप सकती है, फिर तेरे अखबार में,
काम एक है नाम अलग ना बदलाहट किरदार में।
अजय अमिताभ सुमन
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